बुधवार, 25 नवंबर 2009

दुनिया में हर साल 12 लाख बच्चों की खरीद-फरोख्त होती है : यूनिसेफ


यूनिसेफ के अनुसार दुनिया भर में बच्चों के साथ व्यवहार में काफी सुधार हुआ है लेकिन बच्चों की खरीद-फरोख्त अब भी एक गंभीर समस्या है और हर साल 12 लाख बच्चों की खरीद-फरोख्त होती है।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा बाल अधिकार सम्मेलन के 20 साल पूरे होने के अवसर पर प्रकाशित दुनिया के बच्चों की स्थिति के विशेष संस्करण में संयुक्त राष्ट्र की बाल अधिकार समिति के पूर्व अध्यक्ष अवा एन डे आउडरोगो ने कहा कि दुनिया भर बच्चों के साथ व्यवहार में व्यापक सुधार हुआ है लेकिन बाल अधिकारों के मामले में अब भी कई ऎसे क्षेत्र है जिनमें बहुत कुछ किया जाना है। इनमे एक महत्वपूर्ण मुद्दा बच्चों की खरीद-फरोख्त का है।
उनका कहना है कि हर साल 12 लाख बच्चों की खरीद-फरोख्त होती है। खरीद-फरोख्त करने वाले व्यक्तियों के जाल में एक बार फं सने के बाद बच्चों के साथ गंभीर रूप से दुव्र्यवहार तथा शोषण किया जाता है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है। उनको कानूनी सुरक्षा नहीं मिल पाती और वे अपने परिवारों से अलग-थलग हो जाते है। उनको बलपूर्वक विवाह, वेश्यावृत्ति, श्रम अथवा सशस्त्र युद्ध में शामिल होने के लिए मजबूर किया जाता है।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

अब चले गोरखपुर


रोटी खेल पढ़ाई प्यार ,हम बच्चो का है अधिकार ।
इस नारे के साथ बच्चो के संगठन वाइस ऑफ़ चिल्ड्रेन का कारवां वाराणसी से अपने सफर की शुरुआत कर गोरखपुर पहुच चुका है ,सृजन फाउंडेशन द्वारा बच्चो को अपनी समस्याओ पर ख़ुद मुखर होने के लिये बच्चो को एक मंच पर लाने के प्रयास के तहत गठित यह टीम अब गोरखपुर के ग्रामीण बच्चो के bich काम कर रही है । दो दिन के traning के बाद अब अपने adhikaro के लिए आवाज उठाने लगे ,

सावधान


आपका बेटा कुंवारा रह जाएगा ।

उपर लिखा शीर्षक पढ़कर बहुतो को यह कोई हास्य रचना
या कोई सनसनी वाली ख़बर लगेगी ,लेकिन यकीं मानिये ये एक ऐसी चेतावनी है जिससे आप सावधान नही हुए तो आपको अपने बेटे के लिए सुंदर और सुशिल बहु लाने की इच्छा दुस्व्पन बनकर रह जायेगी । देश में जिस कदर भ्रूण हत्या का दर बढ़ रहा है और लड़कियों की संख्या लड़को के अनुपात में कम हो रही है ऐसे में कोई आश्चर्य नही की आने वाले समय में लड़को को उम्र भर कुंवारा रहना पड़ जाए । यह बाते अभी भले ही मजाक लगे मगर देश की जनसँख्या के आंकडो का अध्यन करे तो जो तस्वीर उभरकर सामने आती है वह यह बता रही है की देश में ६१ लाख लड़को के लिये लड़किया नही है ,ऐसे में सामाजिक व्यवस्था जिश कदर प्रभावित होगी वह एक नयी समस्या बन सकती है ।
२००१ के जनसँख्या आंकडे में जो लिंगानुपात दर्शया गया है वह न सिर्फ़ चिंता का विषय है बल्कि आधुनिक परिवेश में भी पित्रसत्तात्मक सोच के बुलंद हौसलों को दर्शाता है । दरअसल बेटा पैदा करने की चाहत और बेटे की ही मुखाग्नि से मोक्ष मिलने की धारणा ने इन्सान के मानसिक संतुलन को इस कदर बिगड़ के रख दिया है की उसे ये समझ में नही आ रहा है की गर्भ में पल रही बेटी की भ्रूण हत्या कर वह न सिर्फ़ पाप कर रहा है बल्कि प्रकृति के विकाश में भी बाधा खड़ी कर रहा है। इन्सान के इस कदम की तुलना हम कालिदास के उस प्रसंग से कर सकते है ,जिसमे वे उसी डाली को काट रहे है जिसपे बैठे है ,परिणाम क्या होगा सबको पता है सिर्फ़ डाली काटने वाले मुर्ख को छोड़कर ,लेकिन अफ़सोस की जयादातर लोग कालिदास ही है
देश में विगत १५ वर्षो विकास की जो नए शुरुआत हुए उसने तो मानो लड़कियों के लिये विनाश की शुरुआत कर दी है ,जीवन की रफ्तार तेज होने के साथ लोगो में एक अच्छी मानसिकता ये आयी की लोगो ने एक या अधिकतम दो बच्चे पैदा करेगे ,लेकिन जब लिंग की बात आती है तो उनकी मानसिकता दिवालियेपन का परिचय देती है ,क्योको उन्हें लगता है उनके वंश के विकाश की गाड़ी तो लड़का ही चला सकता है और गर्भ में पल रही बिटिया कथित विकसित मानसिकता की भेट चढ़ जाती है । देश के विकसित प्रदेशो पंजाब और हरियाणा यह समस्या सबसे ज्यादा है ,पंजाब में जहा प्रति हजार लड़को पे महज ७९८ लड़किया है तो तो पड़ोसी हरियाणा में ८१९ ,यह औसत गुजरात में ८८३ है तो राजधानी दिल्ली में ८६८ लड़किया है । ये आंकड़े ही बता रहे है की विकसित राज्य किस कदर भ्रूण हत्या में आगे है ,,इसमे बड़ी भूमिका मेडिकल साईंस की भी है जिसके इजाद अल्त्रसौन्द मशीनो का उपयोग लोग बीमारी जानने के बजाय लिंग निर्धारण के लिए कर रहे है ,हलाकि इसके रोकथाम के लिए कड़े कानून बने है लेकिन डाक्टरों की लालच और कानून में छप्पन छेद ने लोगो के हौसले को बुलंद कर रखा है ।
यहाँ गौर करने की एक बात और है की जस तरह से लड़कियों की संख्या लगातार कम हो रही है ऐसे में बहु विवाह की प्रथा भी जोर पकड़ सकती है ,इसका उदाहरण उत्तर pradesh के मेरठ और राजस्थान के कुछ ग्रामीण इलाको में देखने को मिल रहा है जहा लड़किया इतनी कम है की लोग बाहर से लड़किया खरीद कर लाते है और वो लड़की उस परिवार के सभी भाइयो की पत्नी बनकर रहती है ,हो सकता है किसी को इस बात पे विश्वास न हो तो वो वाराणसी के रोहनिया थाना के आसपास के गावो में जाकर पता करे तो उसे इस हकीकत का पता चलेगा की पिछले २ वर्षो में लगभग दो दर्जन लड़कियों को मेरठ के दलाल खरीद के ले गए है जो अपने ससुराल में पांचाली बनकर रह रही है । इन बातो पे गौर करे तो निष्कर्ष यही निकलता है की यदि समय रहते आदमी नही बदला तो वो दिन दूर नही की जब उसके बेटे के लिए दुल्हन नही मिलेगी और शायद मिले तो दो लड़को पे एक बहु मिल जाए , क्योकि आंकडे कहते है की अपने लाडलो के लिए आप जैसे लोगो ने ही लाडली पैदा ही नही की है ।
welcome